Thursday, March 9, 2023

तुम्हारे जाने से .....

 ये बादल

ये नदी

ये छत

सब महकते हैं 

तुम्हारे यहां कभी आने से ,


ये धारा 

ये भाव

ये मौसम

सब बदल जाते हैं

हंस देते जब तुम अनजाने से ।


मेरा मन

तुम्हारा मन

ये आंखे 

ये होंठ

तरसते से 

रहते हैं कैसे दीवाने से,


तुम्हारी चाह

देखती राह

खिलते से गुलशन

महकते से बदन

मुरझा जाते हैं 

मजबूरन तुम्हारे जाने से ।


Tuesday, October 18, 2022

मौत का सामान देखा है . . . . . .

 अपनी मौत का सामान देखा है

उसकी गर्दन पर एक निशान देखा है,

लहज़ा फरेबी बातें हसीं दिलकश है कितना वो 

कितनी दफा उन पर लुटते हुए मैंने दिल ए नादान देखा है ,

नज़र भर देख ले तो दिन बन जाता है 

अब भी उस पर मरते हैं कहीं ऐसा कद्रदान देखा है, 

कह तो दिया है तुम्हे बेवफा मैंने 

पर मैं बेइंतेहा दुःखी हूँ जब से तुम्हे परेशान देखा है,

गिनवा तो दिए हैं सबके ऐब तुमने 

कभी खुद का भी गिरेबान देखा है,




Monday, May 16, 2022

मैं इश्क .........


 

इतना आंच कहां से लाती हो ......

रेशम से बालों में सिमटकर

घनघोर मुलायम तुम 

सिल्क सी बाहों वाली

इतना आंच कहां से लाती हो,

दहकी दहकी सी आग में बहुत जलाती हो ।

उड़ते बादलों की मानिंद

फाहों सी बिखरती

चांद से खेलती 

चांदनी बन जाती हो तुम 

सौम्य सुंदर लगती हो जब खिलखिलाती हो,

पर इतना आंच कहां से लाती हो।

नदी की शीतलता समेटे 

किनारों संग गाती

अनवरत सदा तुम 

प्यासा यूं पहाड़ों को छोड़ जाती हो,

पर इतना आंच कहां से लाती हो ।

कानों में रतिकांत 

कटि में पुष्पवान 

तिरछे से हद्द मीठे होंठो को

कामदेव के तीर बनाती हो,

इतना आंच कहां से लाती हो।

ग्रीवा सुराही 

अंग में खुशबू समाई

थोड़ी सी लज्जाई सकुचाई

कानों में सांसों के सुर सुनाती हो 

इतना आंच कहां से लाती हो ।