Thursday, September 25, 2025

आप भी ना . . .

नेकी के बदले नफ़ा माँगते हो, आप भी ना 

वफ़ा के बदले वफ़ा माँगते हो, आप भी ना।

वोट देकर मांगते हो रोटी और रोजगार 

क्या ये हर दफ़ा माँगते हो, आप भी ना।

ग़रीब लूटे दिल तोड़े किए पाप बेहिसाब 

गंगा नहाकर फिर क्षमा माँगते हो, आप भी ना।

पहले वाले तो वापिस किये नहीं अब तक 

और दे दो उधार ये क्या मांगते हो, आप भी ना। 


उम्र तुम्हारी ढल गयी तोंद भी निकल गयी 

आशिक़ मगर छरहरा मांगते हो, आप भी ना। 

खुद में हो चाहे हज़ारों ऐब भरे 

महबूब मगर खरा मांगते हो, आप भी ना। 

इश्क़ कर लिया है जब इस उम्र में तो क्या 

अक़्ल वालों से मशवरा माँगते हो, आप भी ना।


हिंदी हिन्दोस्ता का खाते पीते ओढ़ते हो 

ऑरेंज कहकर संतरा मांगते हो, आप भी ना। 

बचपन से पढ़ाकर अंग्रेजी में बच्चों को 

अब क्या ये हिंदी हिंदी की जबां मांगते हो, आप भी ना।  

स्वार्थों के बस काट डाले जंगल सभी 

अब साफ़ सुथरी हवा माँगते हो, आप भी ना।

उसे तो छोड़ा था बड़े गुमान में तुमने 

उसी के जैसा मिलने की दुआ मांगते हो, आप भी ना।


हर तरफ़ जंग है और तबाही का मंजर  

बस गुलाब के काँटों हेतु सजा मांगते हो, आप भी ना। 

तुम्हारे पाँव के नीचे ज़मीन भी खिसक चुकी 

चाँद सितारे आसमाँ माँगते हो, आप भी ना।

जुल्म जो हमने किए ही नहीं कभी 

उन्ही के लिए सजा माँगते हो, आप भी ना।

जब भी मिले परायों की तरह बेदिली से

अब रूह से राबता मांगते हो, आप भी ना। 

है वो पत्थर सारी दुनिया को है खबर

उसके इश्क़ होने की दुआ माँगते हो, आप भी ना। 



ये दरिया तो हैं सारे के सारे समन्दर के

समंदर से ही इनके लिए धरा माँगते हो, आप भी ना। 

तूफ़ानों में जब दिया जलाकर बैठ गए हो   

फिर आंधीयों से दवा मांगते हो, आप भी ना। 

मिलने के लिए कितने व्रत कितनी ख्वाहिशें 

फिर बिछुड़ने की दुआ मांगते हो, आप भी ना। 
















Sunday, August 31, 2025

अपना. .



लिखते लिखते एक कविता रह गई

उगते उगते सूरज हिस्से आया,

कुछ बातें मन ही में रही 

ऊपर से मौन अंदर में समाया ।

किसी सुनहरी शाम में 

चाँद पर हमने लुटाया सरमाया ।

वो पहले ऐसा नहीं था 

सभी ने उसी कितनी बार बताया ।

जिंदगी जो जीने की चाहत है 

उसकी आँखो ने वो क़िस्सा सुनाया ।

वो बिखरा नहीं था अब तक 

ख़ुद को उसने भरोसा दिलाया ।

एक सितारे ने जो टूट कर 

उसे अपना हिस्सा बनाया ।



Monday, August 25, 2025

नूर बरकरार है




बस एक परत आ गयी थी बादलों की 

नूर तो अभी भी बरकरार है,

हमेशा के लिए नहीं छुपता 

ये सूरज का धरा पर उपकार है ।

ये बहुत अनुभवों से आये हैं जानां 

चेहरे पर जो लकीरों के उभार हैं ।

कल भी ये नज़रें ढूँढती थी तुम्हे 

आज भी तुम्हारा इंतज़ार है ।

चाँद को शिकायत है तुमसे 

रोशन ज्यादा तुम्हारे दीदार है ।

वो समंदर तट बाट जोह रहा हमारी

सूरज जहां जाता होके बेक़रार है। 

किसी अलसायी शाम का डूबता सूरज 

हमें गले लगा के देखो उम्र का उपहार है ।

उसकी सीधे सूरज से गुफ्तगू है 

गरीब के मकान में कहाँ दीवार है।

वो अब घर से निकलता नहीं 

जाने उस पर कितनो का उधार है। 

जो अब भी अकड़ के चलता है 

अफसर सुना है ईमानदार है। 

थोड़ा ठहर के देखे हसीन दुनिया 

क्यों ये मन घोड़े पर सवार है। 

सूरज की हौड़ लगी वक़्त से 

देखो किसकी मजबूत सरकार है।

माहताब की रोशन रात में मिलो 

चर्चे होंगे जिंदगी कितनी गुलज़ार है ।

हम तुम कोशिशों के पुलिन्दे हैं 

वक़्त सबसे बड़ा कथाकार है । 




@प्रेरित 











Thursday, August 7, 2025

तुम्हारी आँखे अलहदा……..



तुम्हारी आँखो की भाषा 

तुम से अलहदा है,

वो साथ नहीं देती

तुम्हारे इस सुनहरे चमकते बदन का,

हँसती गाती मुस्कराती हैं 

खूब सारा प्रेम टपकाती सी,

उड़ जाना चाहती हैं 

रंगों ख़ुशबूओं के संग,

रीतती नहीं हैं 

विचारों मंथन और प्रेम की उलझनों से,

तुम्हारी आँखे बना देती हैं 

एक भिन्न संसार आस पास,

लचकती बेले डांसर की 

कमर के घुमाव समेटे नाचती हैं,

राग समां में घुलते 

जब तुम तकती कनखियों से हौले हौले,

उकेर जाती ख़ाली कैनवास पर 

प्रेम की अनकही कविता,

उनकी समझन भी 

रोमांटिक ग़ज़ल के मर्म सी है,

बहुत जचतीं हैं करती हुई 

अल्हड़ कुंवारी सी अटखेलियां,

गीले गीले कोर  

बाहों के आलिंगन छूटते हों जैसे,

पलकें टिमटिमाती लगता 

पहाड़ों पर आवारा बादल ने मारी गेड़ी है,

तुम्हारी आँखे नहीं बोलती 

तुम्हारे होठों की भाषा,

तुम अलहदा बोलती हो 

प्रेम को रिक्त कर !!!!

 







Monday, April 21, 2025

नहीं ये प्रेम नहीं है.........



 


सारी कशमकश

 ख़त्म हो गयी है 

तुम्हारा इंतज़ार अब नहीं होता  

जो तुमने बहुत पहले बंद कर दिया था

वस्तुतः कभी किया 

ऐसा आभास भी नहीं है, 

नहीं ये प्रेम नहीं है। 


जब कभी हमने कहा

तुमसे प्रेम हुआ जाता है 

मन के इर्द गिर्द 

तुम्हारे वलय बने हैं 

तुमने चूमा और कहा 

नहीं ये प्रेम नहीं है। 


जब  कभी हमने  कहा 

बहुत अच्छे लगते हो 

वक़्त तुम्हारा है 

सोच भी तुम्हारी 

तब भी तुमने गले लगाया 

और धीरे से बताया 

नहीं ये प्रेम नहीं है। 


हमने कहा क्या ही होगा फिर 

प्रेम में होने पर 

क्या तुम्हे देखने भर को 

पुरे दिन की यात्रा करने का श्रम 

या फिर एक झलक पाने को 

सौ सौ बहाने व्यर्थ हैं 

तुमने सांसो में साँसे डूबा कर 

बालों को कान के पीछे ले जाकर 

बहुत पास हर रोम 

को उकसाकर कहा 

नहीं ये प्रेम नहीं है। 


तुमने चाहा की नहीं 

मालूम नहीं 

तुम्हारी बाहों के घेरे 

ये पुकारते से होंठ 

नरम से सीने की 

कठोर सी जकड़न 

पेट में बनती बिगड़ती तितलियाँ 

आँखों में उमड़ा 

समंदर सा नमक 

और जो बेसाख्ता निकल गयी 

वो सब सिसकियाँ 

बता रही थी कि कुछ तो है  

पर सबको धत्ता बता 

तुमने फिर कहा 

नहीं ये प्रेम नहीं है। 


हाँ, नहीं ही होगा 

तुमको प्रेम 

शायद कभी नहीं होगा 

पर भ्रम में डाला 

तुमने हमको 

उलझने बढ़ाई उम्र तक

हमारे लिए तो अब भी तब भी 

शाश्वत सत्य था 

तुम्हारे लिए आज भी 

नहीं ये प्रेम नहीं है।  



Monday, November 4, 2024

बस मन है की तुम खुश रहो. . . . . .

बस मन है की तुम खुश रहो 

तुम्हारे प्रारब्ध में 

किसी के आने से पहले 

उसके साथ 

और जाने के बाद 

बस मन है की तुम खुश रहो। 

इतना श्रम नियति का रहे कि

स्मृतियाँ ऐसी बने  

जब किसी की याद आये 

तो ह्रदय में गुदगुदी भले न हो 

पर होंठो पर हंसी सजे  

बस मन है की तुम खुश रहो।  

इतने निःसंकोच  भी बने रह सको 

कि मोबाइल पर 

किसी का भी नंबर बिना सजग रहे 

सरलता से डायल कर सको 

कोई माध्यम ना तुम्हे खोजना पड़े 

बस मन है की तुम खुश रहो। 

तुम निहार सको 

खुशियों भरी डबडबायी 

आँखों से पहाड़ों के मध्य 

मस्त बहती सरिताओं को 

और सोच सको उनका समन्दर में समाना 

बस मन है की तुम खुश रहो।

उगा सको कुछ पौधे 

जो पेड़ बन सके 

उनमें समाहित हो सकें 

तहज़ीब छाया और फल 

निछावर करने की सदैव 

बस मन है की तुम खुश रहो।

कर सको जो मन हो तुम्हारा 

मन की सुन सको कह सको 

जा सको वहां जहां मन हो 

मन हो तो लौटो नहीं तो नहीं 

सुने रास्ते तुम्हारे मन के हों 

भीड़ तुम्हारे मन की हो 

मन खौफ़जदा ना हो 

सब मन का ही हो बस 

बस मन है की तुम खुश रहो। 




 



Saturday, October 5, 2024

नदी तूफान कोई ला नहीं रही है

तुम्हारी प्यास जा नहीं रही है 

नींद भी अब आ नहीं रही है। 

दर्द इतने झेले चोट कोई 

अब बदन दुःखा नहीं रही है।

बजती रहती फ़ोन की घंटी 

नाम देख वो उठा नहीं रही है। 

गुनाह दोनों का सजा एक को  

रिश्ते की गरिमा निभा नहीं रही है। 

दोस्त कहा और हद्द ये उसकी 

गुनाह मेरे भुला नहीं रही है। 

लगता कई दफे ये बात 

क्यों तुम्हारी जां खा नहीं रही है। 

इश्क़ तुम्हारा नाप तौल वाला  

जिंदगी भुला नहीं रही है। 

बारिश से भीगी तो हुई मटमैली 

नदी तूफान कोई ला नहीं रही है। 

पानी धीरे धीरे घट रहा  

नौका अब समंदर में जा नहीं रही है। 







 





Monday, September 9, 2024

गाने नहीं देते मन को........

तमस 

कितना है 

घने जंगलों के 

बहुत गहरे अंदर 

उधर भी फूट पड़ती 

कोई कोंपल 

सूरज की चाह में 

ढूंढ लेती जीवन को। 


तपिश 

कितनी है 

थार के ऊँचे टीलों पर 

फिर भी 

कोई राही ऊंट संग 

ऊंघता सा 

गा लेता है जीवन राग। 


पत्थर 

कितने हठीले हैं 

न होते टस से मस 

जड़ बने कैसे खड़े 

पर ये हवा 

वो बहता पानी 

तराश लेते इनको 

चमक चांदनी वाली देकर। 


निष्ठुर 

कितने हैं हम  

ह्रदय पर इरादतन  

आवरण कसे हैं 

अंधेरे, अग्न जड़ शिलाओं के  

नहीं फटकने देते पास 

सूरज, हवा, पानी को 

गाने नहीं देते मन को 

कोई मधुर सी धुन जीवन की। 


 




Thursday, September 5, 2024

आईने से झूठ बुलवाया गया है ........

आईने से झूठ बुलवाया गया है 

सबसे सच छुपाया गया है

 

(वो कब का जा चूका इस शहर से 

मिलने को जिसे तुम्हे बुलाया गया है। )

 

वो अब नहीं रहता इस शहर में 

कद्रदानों को बरगलाया गया है।  

 

रूखस्ती उसकी मुश्किल थी 

दिल से जिसे जबरन हटाया गया है।

 

जब मिले तो मोम था दिल उसका 

ठोकरों से जो पत्थर बनाया गया है।

 

ख्वाहिशें लाखों और थोड़े में खुश है 

उस शख्स को बहुत समझाया गया है। 

 

जमीं जायदाद दौलत शोहरत जरुरी है मगर 

सोचो कैसे, क्या खोकर कमाया गया है। 

 

चाय में शक्कर - चम्मच बिना पूछे 

डालकर भी तो प्यार जताया गया है।  

 

जो शख्स ताउम्र घुमा है नशे में 

सुना है इश्क़ घोलकर उसे एक बार पिलाया गया है। 

 

कितनी शर्म हया नजाकत थी उसमे 

साजिशन जिसे बेशर्म बनाया गया है।  

 

मोहब्बत में सब लूटा दिया उसने 

फक्त शरीर को बचाया गया है।  

 

ईश्वर ने भेजा यूंही बे-इरादा हमें  

मजहब मगर सर में घुसाया गया है। 

 

उसकी आँखों में इश्क़ पढता था वो 

दुश्मनी (जिहाद ) का सबक जिसे पढ़ाया गया है। 

 

ये जमीं, आसमां और लहू तो एक है 

स्वार्थों की खातिर हमें लड़ाया गया है। 

 

आईने से झूठ बुलवाया गया है,  

सबसे सच छुपाया गया है।