Monday, November 4, 2024

बस मन है की तुम खुश रहो. . . . . .

बस मन है की तुम खुश रहो 

तुम्हारे प्रारब्ध में 

किसी के आने से पहले 

उसके साथ 

और जाने के बाद 

बस मन है की तुम खुश रहो। 

इतना श्रम नियति का रहे कि

स्मृतियाँ ऐसी बने  

जब किसी की याद आये 

तो ह्रदय में गुदगुदी भले न हो 

पर होंठो पर हंसी सजे  

बस मन है की तुम खुश रहो।  

इतने निःसंकोच  भी बने रह सको 

कि मोबाइल पर 

किसी का भी नंबर बिना सजग रहे 

सरलता से डायल कर सको 

कोई माध्यम ना तुम्हे खोजना पड़े 

बस मन है की तुम खुश रहो। 

तुम निहार सको 

खुशियों भरी डबडबायी 

आँखों से पहाड़ों के मध्य 

मस्त बहती सरिताओं को 

और सोच सको उनका समन्दर में समाना 

बस मन है की तुम खुश रहो।

उगा सको कुछ पौधे 

जो पेड़ बन सके 

उनमें समाहित हो सकें 

तहज़ीब छाया और फल 

निछावर करने की सदैव 

बस मन है की तुम खुश रहो।

कर सको जो मन हो तुम्हारा 

मन की सुन सको कह सको 

जा सको वहां जहां मन हो 

मन हो तो लौटो नहीं तो नहीं 

सुने रास्ते तुम्हारे मन के हों 

भीड़ तुम्हारे मन की हो 

मन खौफ़जदा ना हो 

सब मन का ही हो बस 

बस मन है की तुम खुश रहो। 




 



Saturday, October 5, 2024

नदी तूफान कोई ला नहीं रही है

तुम्हारी प्यास जा नहीं रही है 

नींद भी अब आ नहीं रही है। 

दर्द इतने झेले चोट कोई 

अब बदन दुःखा नहीं रही है।

बजती रहती फ़ोन की घंटी 

नाम देख वो उठा नहीं रही है। 

गुनाह दोनों का सजा एक को  

रिश्ते की गरिमा निभा नहीं रही है। 

दोस्त कहा और हद्द ये उसकी 

गुनाह मेरे भुला नहीं रही है। 

लगता कई दफे ये बात 

क्यों तुम्हारी जां खा नहीं रही है। 

इश्क़ तुम्हारा नाप तौल वाला  

जिंदगी भुला नहीं रही है। 

बारिश से भीगी तो हुई मटमैली 

नदी तूफान कोई ला नहीं रही है। 

पानी धीरे धीरे घट रहा  

नौका अब समंदर में जा नहीं रही है। 







 





Monday, September 9, 2024

गाने नहीं देते मन को........

तमस 

कितना है 

घने जंगलों के 

बहुत गहरे अंदर 

उधर भी फूट पड़ती 

कोई कोंपल 

सूरज की चाह में 

ढूंढ लेती जीवन को। 


तपिश 

कितनी है 

थार के ऊँचे टीलों पर 

फिर भी 

कोई राही ऊंट संग 

ऊंघता सा 

गा लेता है जीवन राग। 


पत्थर 

कितने हठीले हैं 

न होते टस से मस 

जड़ बने कैसे खड़े 

पर ये हवा 

वो बहता पानी 

तराश लेते इनको 

चमक चांदनी वाली देकर। 


निष्ठुर 

कितने हैं हम  

ह्रदय पर इरादतन  

आवरण कसे हैं 

अंधेरे, अग्न जड़ शिलाओं के  

नहीं फटकने देते पास 

सूरज, हवा, पानी को 

गाने नहीं देते मन को 

कोई मधुर सी धुन जीवन की। 


 




Thursday, September 5, 2024

आईने से झूठ बुलवाया गया है ........

आईने से झूठ बुलवाया गया है 

सबसे सच छुपाया गया है

 

(वो कब का जा चूका इस शहर से 

मिलने को जिसे तुम्हे बुलाया गया है। )

 

वो अब नहीं रहता इस शहर में 

कद्रदानों को बरगलाया गया है।  

 

रूखस्ती उसकी मुश्किल थी 

दिल से जिसे जबरन हटाया गया है।

 

जब मिले तो मोम था दिल उसका 

ठोकरों से जो पत्थर बनाया गया है।

 

ख्वाहिशें लाखों और थोड़े में खुश है 

उस शख्स को बहुत समझाया गया है। 

 

जमीं जायदाद दौलत शोहरत जरुरी है मगर 

सोचो कैसे, क्या खोकर कमाया गया है। 

 

चाय में शक्कर - चम्मच बिना पूछे 

डालकर भी तो प्यार जताया गया है।  

 

जो शख्स ताउम्र घुमा है नशे में 

सुना है इश्क़ घोलकर उसे एक बार पिलाया गया है। 

 

कितनी शर्म हया नजाकत थी उसमे 

साजिशन जिसे बेशर्म बनाया गया है।  

 

मोहब्बत में सब लूटा दिया उसने 

फक्त शरीर को बचाया गया है।  

 

ईश्वर ने भेजा यूंही बे-इरादा हमें  

मजहब मगर सर में घुसाया गया है। 

 

उसकी आँखों में इश्क़ पढता था वो 

दुश्मनी (जिहाद ) का सबक जिसे पढ़ाया गया है। 

 

ये जमीं, आसमां और लहू तो एक है 

स्वार्थों की खातिर हमें लड़ाया गया है। 

 

आईने से झूठ बुलवाया गया है,  

सबसे सच छुपाया गया है।





Thursday, March 9, 2023

तुम्हारे जाने से .....

 ये बादल

ये नदी

ये छत

सब महकते हैं 

तुम्हारे यहां कभी आने से ,


ये धारा 

ये भाव

ये मौसम

सब बदल जाते हैं

हंस देते जब तुम अनजाने से ।


मेरा मन

तुम्हारा मन

ये आंखे 

ये होंठ

तरसते से 

रहते हैं कैसे दीवाने से,


तुम्हारी चाह

देखती राह

खिलते से गुलशन

महकते से बदन

मुरझा जाते हैं 

मजबूरन तुम्हारे जाने से ।


Tuesday, October 18, 2022

मौत का सामान देखा है . . . . . .

 अपनी मौत का सामान देखा है

उसकी गर्दन पर एक निशान देखा है,

लहज़ा फरेबी बातें हसीं दिलकश है कितना वो 

कितनी दफा उन पर लुटते हुए मैंने दिल ए नादान देखा है ,

नज़र भर देख ले तो दिन बन जाता है 

अब भी उस पर मरते हैं कहीं ऐसा कद्रदान देखा है, 

कह तो दिया है तुम्हे बेवफा मैंने 

पर मैं बेइंतेहा दुःखी हूँ जब से तुम्हे परेशान देखा है,

गिनवा तो दिए हैं सबके ऐब तुमने 

कभी खुद का भी गिरेबान देखा है,