Monday, August 25, 2025

नूर बरकरार है




बस एक परत आ गयी थी बादलों की 

नूर तो अभी भी बरकरार है,

हमेशा के लिए नहीं छुपता 

ये सूरज का धरा पर उपकार है ।

ये बहुत अनुभवों से आये हैं जानां 

चेहरे पर जो लकीरों के उभार हैं ।

कल भी ये नज़रें ढूँढती थी तुम्हे 

आज भी तुम्हारा इंतज़ार है ।

चाँद को शिकायत है तुमसे 

रोशन ज्यादा तुम्हारे दीदार है ।

वो समंदर तट बाट जोह रहा हमारी

सूरज जहां जाता होके बेक़रार है। 

किसी अलसायी शाम का डूबता सूरज 

हमें गले लगा के देखो उम्र का उपहार है ।

उसकी सीधे सूरज से गुफ्तगू है 

गरीब के मकान में कहाँ दीवार है।

वो अब घर से निकलता नहीं 

जाने उस पर कितनो का उधार है। 

जो अब भी अकड़ के चलता है 

अफसर सुना है ईमानदार है। 

थोड़ा ठहर के देखे हसीन दुनिया 

क्यों ये मन घोड़े पर सवार है। 

सूरज की हौड़ लगी वक़्त से 

देखो किसकी मजबूत सरकार है।

माहताब की रोशन रात में मिलो 

चर्चे होंगे जिंदगी कितनी गुलज़ार है ।

हम तुम कोशिशों के पुलिन्दे हैं 

वक़्त सबसे बड़ा कथाकार है । 




@प्रेरित 











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