Monday, September 9, 2024

गाने नहीं देते मन को........

तमस 

कितना है 

घने जंगलों के 

बहुत गहरे अंदर 

उधर भी फूट पड़ती 

कोई कोंपल 

सूरज की चाह में 

ढूंढ लेती जीवन को। 


तपिश 

कितनी है 

थार के ऊँचे टीलों पर 

फिर भी 

कोई राही ऊंट संग 

ऊंघता सा 

गा लेता है जीवन राग। 


पत्थर 

कितने हठीले हैं 

न होते टस से मस 

जड़ बने कैसे खड़े 

पर ये हवा 

वो बहता पानी 

तराश लेते इनको 

चमक चांदनी वाली देकर। 


निष्ठुर 

कितने हैं हम  

ह्रदय पर इरादतन  

आवरण कसे हैं 

अंधेरे, अग्न जड़ शिलाओं के  

नहीं फटकने देते पास 

सूरज, हवा, पानी को 

गाने नहीं देते मन को 

कोई मधुर सी धुन जीवन की। 


 




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