सुनो
हम तुम्हे छेड़ना चाहते हैं
किसी वॉयलिन की तार सा,
छूते ही जिसे
जैसे होती है झन्न
एक अंगुली का नन्हा सा पौर
और वैसे ही
कंपकंपाते से तुम
हर अंग से फूटती
एक अनसुनी सी धुन,
इन्ही मचलते रागों में
जी लेना कुछ लम्हे साथ
पहाड़ हमें सुनने लग जाएंगे
समंदर रोक लेगा सांसे
रेगिस्तान होंगे रास्ते
मिट्टी नवाजेगी आशिषों से
और मेरे हाथ
सफर पर होंगे
ख्वाहिशों की मंजिल पाने को
हर तार हर लय
को छेड़ते से
तुम इठलाते से
देते रहना मीठी सी तान
ओ जानां ।
Nice
ReplyDeleteThank you !
DeleteMadhur
ReplyDeleteThank You !
DeleteMadhur
ReplyDeleteThank you !
Delete