Saturday, October 26, 2019

ओ रे निष्ठुर . . .

तुम
जिस कदर मेरे पास हो
डर लग रहा है
खोने का
सोचता हूं
पूछ लूं
तुम्हे
चले तो नहीं जाओगे,

फिर सोचता हूं
कितने सवाल है
मन में, पूछना क्या है
कौनसा सवाल सही
बौखलाया हुआ हूं
हो सकता है
मैं शब्द दर शब्द
गलत हूं

लिखते हाथ कंपकंपा रहे हैं
और
मैं डरा हुआ हूं
तुम बस चले मत जाना
ओ रे निष्ठुर ! 

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