Saturday, October 26, 2019

ओ रे निष्ठुर ।


रातों की नींदें
वो सारे बहाने
उड़ाने
घृणा,ईर्ष्या
इच्छाएं,
सवाल, स्वप्न और उनको
पूरा करने को
जोड़ बाकी का गणित
सब तुम्हारे आकर्षक बलिष्ठ बदन
को छू सकने के निमित्त हैं,

तुम्हारे होंठ
विनाश को आमंत्रित
करते हुए कितने रसीले हो जाते हैं
तुम्हारी उष्णता
ओह
वो मेरे हर एक रोम रोम में बस गई है
तुम्हारी खुशबू
टपक रही है बदन के हर हिस्से से
शाश्वत प्यार
तुम्हे पाने की चाह
है अथाह,

वो छुअन तुम्हारी
और मेरा समर्पण
यूं लम्हों में बस तुम्हारा होना
सारी हदें तोड़ने की चाहत
बदमाश उंगलियों की
मंजिले अनकही
अग्न कुछ तो बुझा जा
आजा फिर से गले लगा
कुछ अनसुलझे मुद्दे सुलझा
आ फिर से आ
ओ रेे निष्ठुर !







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