सुनो तुम्हें देखकर
बादल बारिशें भूल गए हैं
इन्हें यहीं बरसना था
पर वो खो गए हैं
तुम्हारी गहरी आँखों में
और खोज रहें हैं रास्ता
तुम्हारे हृदय तक पहुँचने का
अनवरत, सतत,
ये मस्त सी
हवाएं रास्ता भटक गयी हैं
इन्हें यहीं करना था मौसम
खुशगवार और हंसी
पर वो उलझ गयीं हैं
तुम्हारे सुलझे से बालों में
और बसना चाहती हैं वहीँ
हमेशा, अनंत,
और ये बिजलियाँ
खो चुकी हैं रोशनी
इन्हें चमकना था यहीं
लिपट के बादलों से
पर वो तुम्हारे बदन से
निकलती आंच के सामने
धूमिल हो चली हैं
और अपना वजूद बचाने को
समा गयी हैं तुम्हारे अन्दर
जीवन पर्यंत,
तुम बारिश, बादल ,दामिनी सी
लिपटकर अनकही प्यास
पिपाषित की बुझाओ
ओ रे निष्ठुर !
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