Saturday, January 7, 2017

खजुराहो !!

अंतर्मन निश्छल
बदन पर उकेरी चित्रकारी,
है पावन या कि मलिन
द्वंद कितना भारी।

कसीदे हैं भूपतियों की शान के
इच्छाएं अनंत अनाचारी,
चित्र हैं प्रेम के परचम
या अभिव्यक्त अभिसारी।

विराजे भुजंग गर्भ में
और नीलकंठ मनुहारी,
भित्ति अलंकृत कामुकता से
थी चंदेलो की लाचारी ?

पाप-पुण्य क्या काम कृत्य
मानव प्रवृति अहंकारी,
धर्म अधर्म किस से आंके
सृष्टि काम से जारी।

ब्रह्मा विष्णु महेश बसे
तप करें तरुण ब्रह्मचारी,
आलौकिक शक्तियों संग
क्या ये सामाजिक तैयारी ?

मैथुनी मूर्तियां विलक्षण
है तो अद्भुत कलाकारी,
देखे जिसका जो मन
खजुराहो महिमा न्यारी।













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