Monday, October 24, 2016

अरण्य सी पागल इच्छाएं..............

कि तुझे चाहते हैं 
या नहीं
मापदंड निर्णय तुम्हारे हैं
अरण्य सी पागल इच्छाएं
है कितनी,

कि देखकर
तुम्हारी उदास आँखे
धड़कने धीरे हो जाती हैं
दिल बैठ जाता है,

कि समझते
तुम्हारी हंसी को
और तुम्हारे दर्द को
महसूस करते है

कि नदी जैसे
सहलाती हुयी चलती है
धरा के ह्रदय को
अनवरत शीतल सी
मुझे तुम,

कि वन के
शोर को भांप लेते हैं 
वन वाशिंदे
मैं तेरे ह्रदय के शोर को,

कि कहनी हैं
तुझसे ना कहने वाली
कुछ बातें
और सुननी भी हैं
बहुत सारी,

कि चल अपने
चाहतों के बादलों की
गठरी बाँध के
बरस जाएँ किसी जगह
बुझा दें प्यास !





 

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