Wednesday, October 21, 2015

ओ रे निष्ठुर ! -11

दर्द अपनी जगह मुखर है
बेहद
जब मिली हो उसमें बेरुखी
हाँ , पर
तुम्हारी खबर तुमसे मिलती रहे
आधे दर्द तो यूँही चले जाते हैं,

ये बात अलहदा है कि
कुछ दुसरे दर्द फन ताने हैं
जैसे
दवा के छिडकाव से
खरपतवार तो मरे
पर फसल में जहर भी समाये
तुम्हारी बातों से मगर
आधे दर्द तो यूँही चले जाते हैं,

तुम आते रहा करो
दिनों कि थकान मिटाने
उन्हें शांत करने
मालुम हो तुम्हे
एक तुम्हारे ना आने से
रातें बहुत घोर अँधेरी हो जाती हैं
कभी न खत्म होने वाली
स्याह रातें,

आया करो !
कभी दिन बनकर
कभी नर्म चाशनी सी
चांदनी रात लेकर

आया करो !

ओ रे निष्ठुर !









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