Monday, August 17, 2015

ओ रे निष्ठुर-10

कितनी प्रार्थनाओं
दुआओं
इंतज़ार का
परिणाम थे ,
क्यों चले गए तुम
आओ फिर से।

नाराज़गी
हमें भी है
फिर तेरी यादें
बातें
सब ज्यों की त्यों हैं तो
हम  ठहरे हैं 
क्यों चले गए तुम
आओ फिर से।

बंजर धरती की ख़ामोशी 
बारिश की बूंदो 
को समझ आती है ना 
हमें कहना नहीं आया 
तो क्या 
समझे तो, कुछ कह दो 
क्यों चले गए तुम
आओ फिर से।
 
या फिर आंच से 
जला दो 
इस हृदय धरा पर 
उगा हुआ प्रेम 
तिलिस्मी कहानी सा 
कोई पत्थर बना दो 
लेकिन जाओ मत 
आ जाओ 

ओ रे निष्ठुर !!

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