Thursday, July 16, 2015

अधूरी कविता .....

देख आज मैं हार गयी
जमाने की हर बात सोचकर
किसी खड्ड के पानी में
सड़ती मरी कोई 
मछली सरीखा
तेरा मेरा रिश्ता 
कर मैं जार जार गयी,
देख आज मैं हार गयी,
 
जाने क्या क्या सोचा होगा तूने
क्यूँ जोड़ा
क्यूँ तोडा
क्या बाकी था
क्या वसूला
क्यों कर सब मैं तार तार गयी
देख आज मैं हार गयी,
 
ह्रदय रोया
आंसू रोये
रोया तकिया रोया बिस्तर
मेरा रोम रोम रोया  
क्या दिया इस जग ने
खातिर जिसकी
मैं अपना सब कुछ वार गयी
देख आज मैं हार गयी । 
 
 
 

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