Friday, July 17, 2015

ओ रे निष्ठुर-9

तेरे आने से
मेरे शहर का 
रेलवे स्टेशन 
कितना महक गया था 
कोने में पड़े 
गन्दगी के ढेर से 
गुलाबों की खुशबू 
उमड़ रही थी,

चप चप 
समोसे खाती 
स्टेशन के 
द्वार पे बैठी बूढी औरत 
सावन की पहली बारिश 
वाली बूंदों की 
अठखेलियों को 
मात दे रही थी, 

तेरे इंतज़ार का 
हर लम्हा 
खूबसूरती की हदें 
लांघ गया 
वैसी रगों में सरसराहट 
सच बात है 
आज तक नहीं दौड़ी 

कभी फिर से 
मेरे शहर को 
महकाने आ
बिन बारिश के 
वैसा अहसास 
जगाने आ 

आ कभी तो 
ओ रे निष्ठुर !!

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