अब ये तो
सत्य हुआ
तुम्हे जाना था सफर में
वो आसमां जमीं
बुला रहे थे अपने आगोश में
बस मेरा साथ बुरा था।
देवदार के पेड़
वो दूब
नदी
और नाव
महसूस करने थे
खोना था बाहों में जिनकी
बस मेरा साथ बुरा था।
कहके आया था
मैं जिन पर्वतो
को तेरे साथ की बातें
कभी कभी
पूछते हैं हुआ क्या
बस मेरा साथ बुरा था।
जब गए हो अकेले
तो मुठ्ठी भर
नदी, दूब
पर्वत, बर्फ
और मेरी यादें
समेट लाना
दफ़न करने को
ओ रे निष्ठुर !!
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