माफ़ करना
पता नहीं उस दिन की संध्या इतनी अजीब क्यूँ थी। मई का महीना, वो भी खत्म होने को अग्रसर, मौसम में बहुत गर्मी हुआ करती है इन दिनों परन्तु आज नहीं थी। खुश्क था पर हलकी हलकी हवा ने सहनीय बना दिया था। कहते हैं मौसम अच्छा हो तो जिस से आप प्यार करते हैं वो सबसे ज्यादा याद आता है। गलत कहते हैं। कैसा भी खजल मौसम क्यूँ न हो जब इंसान प्रेम में होता है तो उसका याद आना मौसम पर निर्भर ही नहीं करता। वो किसी भी बाहरी अवयव का मोहताज नहीं। गर्मी , सर्दी , आंधी-तूफान सब तो अन्दर ही चलता रहता है। याद अनवरत होती है। मोहन के साथ भी ऐसा ही हो रहा था। मई का महीना, कुछ कम खुश्क मौसम, सुहावना कहीं से भी नहीं, परन्तु याद ने झंडे गाड़ रखें हैं। शाम होते होते उसने फ़ोन उठा ही लिया, देखूं कहीं नंदिनी ऑनलाइन हो तो कुछ बातें कर ली जाएँ। पिछले कुछ अरसे से वो अपने आप से और नंदिनी से डरने लगा है। बिना किसी बात के बहस हो जाती है, कहना कुछ चाहता है समझा कुछ जाता है। इधर मोहन का अपने आप से ही बुरा हाल है अपने सेंटीयापे से परेशान है। साला घर, बाज़ार, कॉलेज कहीं भी मन नहीं लगता। बस दिल होता है नंदिनी से बात हो जाए। दोस्त परेशान कर रखे हैं। अब तो दूर भागने लगे हैं, यार तेरा सेंटीयापा बहुत बोरिंग हो रहा है। कल एक सीडी छः बार सुना कर बोलता है, इसमें कौन कौन से गाने हैं। भाई कुछ कर ले अपना। रात को दो दो बजे उठा कर अपनी सड़ी गली कविताएं सुनाता है। सब खीजने लगे हैं। मोहन को भी पता है कुछ ज्यादा हो रहा है। वो होने देना चाहता है पहली बार ऐसी फीलिंग्स आई हैं, महसूस करना चाहता है, देखना चाहता है दिखाना चाहता है, ढेर सारी बाते करना चाहता है, ख्याल रखना चाहता है, वक़्त साथ में बिताना चाहता है, सपने हैं कुछ साथ में उनको जीना चाहता है, दर असल क्या क्या करना चाहता है उसे खुद को कम ही अंदाज़ा है।
यादे बस से जब बाहर होती हैं वो फिर से फ़ोन उठाता है। यादे तीव्र और मद्धम होती हैं। हर कार्य में उसकी सोच होती है। नंदिनी सार्थक है,उसके मन की सहमति है, सुख दुःख है, प्रेम है, सम्मान है, सब वो ही तो है।
मोहन आखिरकार लिख ही देता है
हेल्लो
कैसी हो ?
ठीक हूँ , मौसम बड़ा मस्त है इधर।
"हां, इधर भी ठीक है"। मोहन ने कहा। जब वो नंदिनी से बात करता है तो सब मौसम उसे अच्छे ही लगते हैं।
अभी बाजार गयी थी, कुछ बैंक का काम और कुछ घर का सामान। नंदिनी ने लिखा।
'ऐसा ! तुम्हे भी घर पर रहने की आदत नहीं रही, छुट्टियाँ हैं तो ऐसे घूमना चल रहा है। '
घूमना क्या . . . कुछ काम खुद जाकर ही होते हैं, बैंक का काम, नेट बैंकिंग में दिक्कत, पासबुक में एंट्री अगेरा वगेरा। नंदिनी ने फिर लिखा।
"सही बात है, मुश्किल तो है"। मोहन ने जवाब में लिखा था।
तीन चार महीने से टाल रही हूँ, सोचा अब तो कर ही डालूं।
'' हाँ , ये बात तो सत्य है, तुम टालती बहुत हो। मोहन ने फिर लिखा। टाला मत करो, काम को कर डालो नहीं तो वो सरदर्द करना शुरू कर देता है। "
'तुम्हारी तस्वीर बहुत सुन्दर बन पड़ी है। बहुत सौम्य और सुन्दर। मस्त लग रही हो। '
धन्यवाद ! तुम भी पहले से स्लिम लग रहे हो. . . . . . . नंदिनी ने लिखा।
' हाँ थोडा खाने पीने पर ध्यान दिया है, इसीलिए। '
यार ऑफिस का काम ही खत्म नहीं हो रहा। कब से सोच रहा हूँ कुछ छुट्टियाँ ली जाए काम किया जाए। मोहन मन की बाते कहना चाहता था वक़्त नंदिनी के साथ बांटना चाहता था। वो ही उसने लिख भी दिया।
'काम भी चलता रहेगा जिंदगी भी आगे बढती रहेगी ' नंदिनी ने लिखा।
"अभी तो खत्म होने लगी है, औसत के हिसाब से अभी ज्यादा चली गयी कम रह गयी। काम जस के तस हैं। बड़े बड़े सपने हैं जो जीने भी हैं। " मोहन ने लिखा।
हाँ नए काम नए तजुर्बे कर रहे हो आजकल, बाहर भी जाना है तुम्हे, सपने और महत्वकांक्षाए हैं बस जीते चले जाओ। नंदिनी ने बड़े उत्साही अंदाज़ में कहा था।
"हाँ सपने तो बहुत हैं।" मोहन सब बता देना चाहता था नंदिनी को। पर एक अनजाना डर बार बार उसे रोक देता था।
'कौन कौन से सपने हैं।' नंदिनी ने लिखा।
"तुम्हारे साथ वक़्त बिताना है। समन्दर किनारे कोई शाम गुजारनी है। जब तुम बूढी हो जाओगी तो भी तुम्हारे साथ डेट पर जाना है। उसने डरते डरते लिख ही दिया था।"
तुम फिर वो ही बाते लेकर बैठ गए हो ! मुर्गे की एक टांग की तरह तुमने भी कोई शर्त लगा रखी है? तुम्हे पता है मुझे ये बाते पसंद नहीं है फिर भी ? नंदिनी बिफर गयी थी।
"मैंने तो बस सपने बताये थे, तुम्हे कोई अवसाद देना मकसद नहीं था। मैं अपने शब्द वापिस लेता हूँ। " बात ज्यादा ना बिगड़ जाए मोहन ने माफ़ी मांगते हुए लिखा था।
'नहीं मुझे ये पसंद नहीं हैं, बहुत दवाब महसूस होता है मुझे कभी कभी। जीना दूभर लगता है। ' नंदिनी ने फिर लिखा।
" जीना दूभर .......... मुझे माफ़ करना मेरा ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था। " मोहन ने फिर लिखा।
'तुम्हे अपनी लाटरी लगने की पड़ी रहती है। लाटरी …………यही शब्द है न तुम्हारा मेरे लिए। ' नंदिनी ने उखड़ते हुए कहा।
मोहन को यही डर था। जिसे बे इन्तेहां प्रेम किया वो ही उसे गलत ठहरा रही थी। आत्म सम्मान,स्वाभिमान , आशा, ख़ुशी, सब तो उसके साथ था। उसके कहने से बात करना तो क्या सोचना भी छोड़ सकता था। उसी की वजह से उसकी नंदिनी का जीना दूभर था, दवाब था। उसकी वजह से। उसका गला भर आया था। सपने उसने देखे थे जब नंदिनी ने पूछा तो उसने बता दिए। गलत किया। परन्तु वो भी उसका सपना ही तो है। नंदिनी का कहना कि वो उसे लाटरी समझता है, आत्मग्लानि की पराकाष्ठा थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसका प्रेम इतना छिछिला कब से हो गया जो नंदिनी ऐसा सोचने लगी है। कहीं उसी के मन का वहम तो नहीं कि जिसको वो प्रेम समझ बैठा है वो नंदिनी ने कभी सोचा ही नहीं। परन्तु दवाब, जीना दूभर ……………… मेरी वजह से ………मोहन को अन्दर ही अन्दर कुछ धंसता महसूस हुआ।नब्ज़ धीमे धीमे थी। उसका और उसके प्रेम का देहांत हो रहा था। वो मर चूका था।
उसने लिखा " मुझे माफ़ करना "।
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