Thursday, June 4, 2015

हम वीरानों में शहर ढूंढ रहे हैं..........

इधर उधर से
जाने किधर से
तेरी खबर ढूंढ रहे हैं
हम वीरानों में शहर ढूंढ रहे हैं।

कहनी सुननी हैं
करनी हैं जो बातें तुझसे
ऐसी गुफ्तगू को तू नहीं है
उनके लिए भी तुझसा मगर ढूँढ रहें हैं।

मुश्किल जीना
मरना मुख़्तसर नहीं
तेरी यादों को जिन्दा रखे
मरने की खातिर ऐसा जहर ढूँढ़ रहें हैं।

वो मखमली होंठ
और वो नरम बाहें
समंदर के किनारे
तुम्हारे आगोश सी कोई लहर ढूँढ़ रहें हैं।

कोई ऐसा पल गुजरे
जिसमे तुम नहीं हो
अँधेरे, डर में सहमें खोये से  
हम तेरे बगैर का कोई पहर ढूँढ़ रहें हैं।






मुख़्तसर=संक्षिप्त, कम

No comments:

Post a Comment