Wednesday, June 10, 2015

तालाब की हंसिनी.........

तेरे इंतज़ार में
घडी के कांटे टूटे
मेरी गिनती खत्म है
आस लेकिन
अभी जिन्दा है,
किसी और के बारे में
सोचा था
मन जाने क्यों
अभी तक शर्मिंदा है।

हाँ मैं
गहराइयों से
तेरा होना चाहती हूँ
पर तू टिकता
कहाँ है मन मेरे
तू भी चंचल परिंदा है।

तेरा गुलाब
वो संतरी सी दीवार
तालाब की हंसिनी
और तेरा अक्स
मन में बाशिंदा है।




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