जो कहता हूँ वो खंजर बन रहा है
जाने कैसा ये मंजर बन रहा है।
आबाद था तेरी हंसी से जो रिश्ता
मेरे अश्कों से बंजर बन रहा है।
ह्रदय कच्ची मिटटी बीज प्रेम के
सींच दो फिर से पत्थर बन रहा है।
कुछ इस तरह से लिया नाम तेरा
अब अरदास का मंतर बन रहा है।
गम जो मैं बना तो है वादा खिलाफी
मिटा दूं वजूद सब समन्दर बन रहा है।
जो लिखा मेरी कलम ने तेरे वास्ते
हर हर्फ़ अर्जी का कलंदर बन रहा है।
जाने कैसा ये मंजर बन रहा है।
आबाद था तेरी हंसी से जो रिश्ता
मेरे अश्कों से बंजर बन रहा है।
ह्रदय कच्ची मिटटी बीज प्रेम के
सींच दो फिर से पत्थर बन रहा है।
कुछ इस तरह से लिया नाम तेरा
अब अरदास का मंतर बन रहा है।
गम जो मैं बना तो है वादा खिलाफी
मिटा दूं वजूद सब समन्दर बन रहा है।
जो लिखा मेरी कलम ने तेरे वास्ते
हर हर्फ़ अर्जी का कलंदर बन रहा है।
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