Saturday, May 16, 2015

कुछ नहीं कहती मिट्टी....


किसी का बिस्तर, चाह किसी की
हर वक़्त धुँआ धुँआ सुलगती मिट्टी। 

घड़े में  बेटी सी बंद करके रखी है
अब नहीं दर दर भटकती मिट्टी।

तूफान जलजले हज़ारों सह चुकी
अब बातों से नहीं बदलती मिट्टी।

हुकुमती गलियारों में दर बदर है
अब माथे पर नहीं सजती मिट्टी।

सिक्को की खनखनाहट से बिके
घरों में उनके नहीं टिकती मिट्टी।

माया मोह में छोड़ी वसुधा अपनी
याद में उनकी बहुत बिलखती मिट्टी।

प्यार में तूने बांटे होंगे तन बदन 
हैं दोनों अलग कहाँ समझती मिट्टी।

तू रंगों की बारिश है मन मेरे पे
साथ तेरा हर पल हंसती मिट्टी।

धर्मों के संवाद में बहुत तप चुकी
बेसब्र हो मेह को तडपती मिट्टी।

सावधान ए जुल्म ढहाने वालो 
नए जोश होश से जगती मिट्टी।

हैं इसके अपने बुत अपने निशां
हवाओं संग नहीं बहती मिट्टी।

जुल्म घृणा संहार सहती मिट्टी
धैर्य देखो कुछ नहीं कहती मिट्टी।


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