Wednesday, December 31, 2014

हूँ किसान मैं.....

मेरा अपना कुछ भी नहीं है
मैं तो दूसरों के गीत गा रहा हूँ।

बड़े जतन से जमीं खोदी संवारी है
अब बारिशों बादलों को मना रहा हूँ।

खुद भुखा हूँ आंसू है आँखों में
जमाने को फिर भी खिला रहा हूँ।

कितने कर्ज चढ़े हैं सर पे भारी
अब जान देकर उनको चूका रहा हूँ।

अंधे का कटोरा और एक भ्रम
पत्थर रखे हैं अंदर खनका रहा हूँ।

खुद हूँ की नहीं यकीं है नहीं
फिर भी खुद को तुझपे लूटा रहा हूँ।

एक खाली रास्ता रेगिस्तां जिंदगी
उम्मीद के बल चला जा रहा हूँ।


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