Thursday, September 18, 2014

कुछ ख्वाहिशें ..........

देखिये कुछ ख्वाहिशें
उसे हँसाना चाहती हूँ
खुद भला हूँ जितनी  उदास
उसके लिए कुछ
गुनगुनाना चाहती हूँ,

बहुत रातों से
जगा है शायद
थका डरा सा वो
मेरा सगा है शायद
पलकों से उसकी
थकान मिटाना चाहती हूँ,

रात भर ख्वाबों में आये
खुद पसीजे मुझे हंसाये
न कुछ वो समझे
ना मुझे आये
प्यार उससे बहुत
थोडा समझाना चाहती हूँ,

वक़्त की सब सौगातें
क्या तन
क्या मन की बातें
डर तो मुझे खुद से
हां ये भी सच है मगर
उसकी हो जाना चाहती हूँ,

हज़ारों बंदिशे
खुद पर थोपी हैं
थोथी हैं झूठी हैं
मालूम मगर
कभी कभी तो
इनको झुठलाना चाहती हूँ
हाँ मैं तेरी हो जाना चाहती हूँ
तुझे हँसाना चाहती हूँ।




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