Saturday, September 6, 2014

ओ रे निष्ठुर !!

अच्छा सुनो
अब नहीं आती
मुझे याद तुम्हारी,

न ही नसों में
सरसराहट होती है
तुम्हारे नाम से,

मेरे रुख्सारों पर
तितलियाँ नहीं बनती
तुम्हे सोचते हुए,

तुम्हारे हिस्से का
सोचते सोचते
सुन्न हो गये सब,

हजारों दफ़ा आये
ख्वाबों में तुम
हजारों दफ़े
तुम्हे ज़िंदा करते करते
जान चली गयी
ओ रे निष्ठुर !





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