तुम्हे छुपा रखा है
अंदर
बहुत सारी
छालों में
सर्दी गर्मी
धुप छाँव
बारिश से
बचाते हुए,
बुरी हवा
नहीं फटकेगी
तुम्हारे पास
जब तलक
पता ना चले
बुरा- भला क्या
निश्चिन्त रहो बस,
आँखों से
अश्क़ जाया
ना जायेंगे
होंठ कापेंगे नहीं
आवाज़
उठाने को
सज रहो बस,
मैं वो बरगद हूँ
जिसकी जड़ें
तुम हो
और मैं अपना
सारा सामर्थ्य
लगा दूंगा
तुम्हारी खातिर
मेरी बच्ची
निश्चिन्त रहो बस।
अंदर
बहुत सारी
छालों में
सर्दी गर्मी
धुप छाँव
बारिश से
बचाते हुए,
बुरी हवा
नहीं फटकेगी
तुम्हारे पास
जब तलक
पता ना चले
बुरा- भला क्या
निश्चिन्त रहो बस,
आँखों से
अश्क़ जाया
ना जायेंगे
होंठ कापेंगे नहीं
आवाज़
उठाने को
सज रहो बस,
मैं वो बरगद हूँ
जिसकी जड़ें
तुम हो
और मैं अपना
सारा सामर्थ्य
लगा दूंगा
तुम्हारी खातिर
मेरी बच्ची
निश्चिन्त रहो बस।
No comments:
Post a Comment