Thursday, August 28, 2014

हज़ारों सागर अमृत फैला......

अधर तुम्हारे
हौले से हिले
नदी के नीले पानी पर
तैरता हो चाँद जैसे
छू लिया अधरों को
आसमां से गिरे
अभागे तारे ने ऐसे 
मिट गए 
सारे संताप
सिमट गए
लिपट गए
नदी में चाँद
चाँद में तारा
सुलगती थी चांदनी
बहकती थी हवा
अमृत खोये 
अमृत पाये
थी
अमृतोत्सव बेला
नदी सागर में ऐसे मिली
हज़ारों सागर अमृत फैला।



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