Thursday, August 7, 2014

अच्छी लगती है.......

हो बदन में तकलीफ तो दवा अच्छी लगती है
इनाम की राशि हो  सवा अच्छी लगती है,

बिना पैसे बाबुओं की चाकरी अच्छी लगती है
सच्चाई की संसद में हाज़िरी अच्छी लगती है,

आएं दुखो के सैलाब हों मुसीबतें सर पे बड़ी
साथ में खड़ी  बिरादरी अच्छी लगती है।

किधर जाएँ तेरी जुल्फों की शाम ढूंढने
हमें अपने घर की आबो हवा अच्छी लगती है।

हुक्मरानों की खिसयाहट और करबंद सियासतें
चुनाव की गर्मी में अपनी हवा अच्छी लगती है,

प्यार के तोहफे की पहचान अच्छी लगती है
बाबा के कांपते होंठो  की मुस्कान अच्छी लगती है,

अहम मेरा सो जाता माँ की गोद में थककर
हर पल माँ की नज़रें मेहरबान अच्छी लगती हैं।

हो बेटी घर से रुखसत तो रुलाई अच्छी लगती है
बाबा के हाथ से हौले से थपकाई अच्छी लगती है,

उम्रदराज हों और बीमार हों जब बुजुर्गवर
दुनिया से उनकी शांत विदाई अच्छी लगती है।

जब जग में हो नहीं बस में कुछ भी अपने
 कुछ वक़्त की  तन्हाई अच्छी लगती है,

ऊँचे महलों को देख न हो जार जार
मन में प्रार्थना और समाई अच्छी लगती है।





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