Saturday, September 21, 2013

शहर में आते हैं पर मिलते नहीं हैं......

शहर में आते हैं पर मिलते नहीं हैं
जो कभी बस हमसे मिलने आया करते थे
 

वो आशिकी का मौसम था खूब
छुप के जब उसकी छत पे जाया करते थे

खड़े रहे उसकी राहों में भरी दुपहर
कैसे हम इश्क की रश्म निभाया करते थे 



पुरे गाँव में किस्से थे मशहूर मेरे 
दोस्तों के हाथों तुझे ख़त पहुंचाया करते थे 

डायरी के पन्ने तेरी खुशबू से भरे हैं 
जिनमें तेरी फोटो तेरा ख्याल छुपाया करते थे 


जी तुम्हे मेरा ख्याल आता तो होगा 
जब कंधे पे सर रखके अश्क बहाया करते थे 

अब करते नहीं हैं पल भर बात
जो सर्द रातों में हमें जगाया करते थे

अब भाती  नहीं है तुम्हे शायद 

जिन बाँहों में दुनिया का गम भुलाया करते थे

अरमां छोटे और फकीरी हमारी 
तेरे सपने बड़े जालिम नींद चुराया करते थे 

एक घर मेरा भी है बस तू नहीं उसमें
यूँ हम मिलकर भी कितने घर बनाया करते थे 

खुश तो है न तू जहां भी है  प्रिय
तुझे तो स्वपन स्वर्ण के आया करते थे 

मिट्टी से बनाने चला घरोंदे मुर्ख मैं 
तुझे सब चांदी की प्लेट में खिलाया करते थे 

शहर में आते हैं पर मिलते नहीं हैं
जो कभी बस हमसे मिलने आया करते थे











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