जब जिंदगी बड़ी अच्छे से गुज़र रही हो तो आदमी को आराम से उसका मजा लेना चाहिए पर अपने राम तो ऐसे बने ही नहीं। अपनी लगवाने के लिए किसी भी और चल पड़ते हैं। जब आराम में हैं तो कुछ नया, कुछ रोमांचक चाहिए और जब रोमांचक आ जाये तो आराम चाहिए। तो दोस्त लोग इस आदत की वजह से अपन बहुत बार लगवा चुके हैं। तो क्या सुधर गए ! ना .. अभी तक तो नहीं, मतलब ये की अभी तो हद पार नहीं हुयी न ही आराम की और ना ही रोमाँच की। अर्थात जिंदगी अभी बाकी है दोस्त !! जब जिंदगी बाकी है तो साफ़ है की अपन भी वैसे ही हैं। बचपन से जब से थोडा थोडा होश संभाला है , हालांकि ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि कवि मित्र ऐसा ही कहते हैं कि होश सँभालने के बाद ये किया वो किया वरना मुझे नहीं लगता मैंने कोई होश वोश संभाला भी है, तब से ऎसी हरकते करते आये हैं। जब लगा की अपनी वजह से अपने किसी खास लंगोटिए यार की कबड्डी वाली टीम हार रही है तो चोट खाकर उसे जीता दिया बाद में चाहे चोट की वजह से बापू ने जितना मर्जी डांटा हो। जब लगा की यार क्लास में गुरु जी द्वारा पूछे गए सवाल का उत्तर किसी को नहीं आ रहा तो अपन भी आता हुआ उत्तर देने से मना कर गए और बिंदास पिटे। जब गाँव में आई बारात को छेड़ने की बारी आती तो सबसे आगे रहते और फिर बुजुर्गों की डांट खाते। कॉलेज गए तो दोस्तों ने कई बार हॉस्टल से निकलवाया। अब या तो ये दोस्तों की मेहरबानी थी या फिर हमारे डिटेक्टिव वार्डन साहब की जो तमाम सुबूतों को मद्देनज़र रखकर हमें हॉस्टल तुरंत छोड़ने का तालिबानी हुकुम देते थे।
अब ये आदते न छूटी चाहे तथाकथित बड़े हो गए हों या सर पर आये सफ़ेद बालों ने उम्र झलकाना शुरू कर दिया हो। अब बालों को ही ले लो सारे अजीज़ कहते हैं की रंग लो , अपन का मानना है की मुश्किल से तो दुसरे लोगों ने ( जो जानते नहीं हैं ) बड़ा समझना शुरू किया है इस सुखद अहसास को क्यों खोया जाये कम-स-कम कुछ लोग तो सोचे की यार ये बड़ा आदमी है चाहे उम्र में ही सही। वैसे तो हम बड़े बन नहीं पाए। कसम से इस बात से बड़ा ही शकुन है कि पहले बेटा कहकर पुकारने वाली आंटी लोग अब जरा इज्ज़त देने लगी हैं। वरना हमारी आधी बातें तो हवा बन उड़ जाती थी, और जो एक आध को देखकर दिल में कशिश उठती थी वो बस कसमसाकर दम तोड़ देती थी।
खैर समस्या बड़ी ये नहीं है की आंटी लोग क्या समझती हैं और क्या कहती हैं समस्या ये है की प्यार में रूहानी और जिस्मानी प्यार को अलग अलग कैसे किया जाये?अब आप लोग भी सोच रहे होंगे की 'ले बेटा आ गया ना घिस्से पिटे टॉपिक पर' परन्तु समस्या तो गंभीर है ही। जिन लोगों ने इससे दो-दो हाथ कर रखें हैं उन्हें तो मालूम ही होगा कि ये वही.… वही पुराना वाला टॉपिक है, जिस पर बड़ी बड़ी कांफ्रेस हॉस्टल के उस कोने वाले कमरे में बैठा करती थी पर हल तो अभी भी नजर में नहीं आ रहा। तो पहली बात तो ये की साला प्यार कौनसी बला का नाम है? इमानदारी वाली बात ये है कि 'उस' वाली उम्र में हम भी यही सोचा करते थे जो अभी बहुत से नासमझ सोचते हैं। इस दुनिया से परे की कोई बहुत खूबसूरत सी कल्पना और उसी कल्पना से जुड़े ढेरों हसीं ख्वाबों वाली महान सुखदायी सम्पूर्ण समर्पण वाली भावना। हालांकि आप मेरी इस बात से सहमत नहीं भी हो सकते हैं, भाई अब अरबों लोगों को सहमत मैं करवा भी तो नहीं सकता, करवा सकता तो बाल सफ़ेद कर खुद को बड़ा बनाने की कोशिश ना करता। अपनी समस्या इसके बाद जब ये सब हो गया अर्थात प्यार, तो शुरू होती है कि मुख्यतः इसे यही प्यार करने वाले रूहानी (आत्मिक) और जिस्मानी (शारीरिक) कहते हैं। मुझे जहां तक मालूम चला है जिस्मानी वाला तो प्यार होता ही नहीं है उसे तो प्यार के दायरे से बाहर ही रखा जाता है नाम भी कुछ अश्लील टाइप के दे दिए जाते हैं, फिर इसे प्यार का नाम क्योंकर दे दिया गया अपन के दिमाग से परे की बात है। मलतब ये की उन सब तर्क-वितर्क पर विचार करो जब ये कहा और सुना गया कि " तुम्हे तो शारीरिक प्यार चाहिए" या "नहीं जब आत्मा से प्यार है तो शरीर क्यूँ " या "नहीं बस प्यार की यही हद है" आदि आदि। तो हर जगह प्यार तो आता है पर रूह से अलग और थोडा नीच प्रवृति वाला है, जब आपने किसी ऊपर लिखे तर्क को सुना है तो समझ लें कि प्यार व्यार कुछ नहीं है बस वो चाहिए जो सामने वाला देना नहीं चाहता और रूह अभी अलग पड़ी कहीं बिलख रही है।
तो आत्मिक प्यार किसे कहेंगे ? यार सिंपल भाषा में 'सच्चा वाला' और जब ये है तो प्यार के मायने बदल गए अर्थात सब रूहानी हो गया। फिर रूह को जिस्म से अलग कैसे किया ? और जब इसी यानि 'सच्चे वाले' में भी वही तर्क (ऊपर जो लिखे गए ) गर रहे तो समझ लो कि अभी दोनों में प्यार व्यार है नहीं। अपन का सिंपल लॉजिक भी और उम्र का अनुभव भी ये है कि जब रूह निकल गयी तो शरीर को फूंकने में दुनिया वाले थोड़ी सी ही देर लगाते हैं जब तक कि वो किसी "बड़े" का न हो और वहां भी जनता दर्शन के बाद गति तो वो ही है । और उस रूह से कोई फिर प्यार करेगा कैसे ? वो तो भूले से भी कहीं दिख गयी तो कई सारी नित्यक्रियायें समय असमय हो जाएँगी। फिर जब रूह से प्यार है तो शरीर तो गौण है उस हाड माँस के लोथड़े के लिए इतनी मारा मारी क्यूँ। अब इसी को इस तरीके से भी कहें की जब रूहानी प्यार है तो शरीर को लेकर इतनी हाय तौबा काहे ? समर्पित क्यूँ न किया जाये ? वैसे भी जब मन दिया तो तन किस के लिए सहेजना। तो अपना सम्पूर्ण विज्ञानं यही कहता है कि रूह और शरीर एक दुसरे के पूरक हुए। जब प्यार है तो बस सब शामिल है नहीं तो ढकोसले चाहे जीतनी मर्ज़ी कर लो।
अंततः फिर आप सभी पढ़े लिखे लोगों से मेरी गुज़ारिश है की हो सकता है आप मुझसे सहमत ना हो, आखिरकार इंसान का खुद का भी कोई अनुभव होता है भाई। क्या पता किस किस ने कहाँ कहाँ लगवा रखी हो और अपन की समस्या से बड़ी देश, राजनीति, पाकिस्तान , महँगाई , तेल , कोयला और पता नहीं कितनी अनगिनत समस्याएँ बुका फाड़े वर्षो से खड़ीं हैं जब उनके लिए किसी का कुछ न उखड़ा तो ये वाली तो साला हम मिल बाँट के सुलझा लेंगे। क्यूँ है की नहीं ?
Sorry but not gripping enough to read through!
ReplyDeleteBut thanks for comment....keep on reading ....
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