Wednesday, August 8, 2012

लहरें

हमने देखा हमारी पतिव्रता बीवी अभी तक सोई है
जो सुबह चार बजे पति दर्शन से दिन की शुरुआत करती है
अभी तक सपनो में खोई है
हमारा ज़रा अहम् जागा हमने हुंकार  लगाई
अरे भगवन अब तो जागो
बिस्तर त्यागो
कुछ चाय वाय पिलाओ  और आज का अख़बार लाओ
इतना कहना था की जलजला आया
सारा घर थरथराया
पत्नी बोली -आज से चाय तुम बनाओगे
सब्जी भाजी तरकारी बाजार से लाओगे
..अब जितना तुम देते हो उससे घर चलता नहीं
दाल चावल दूध सब हुआ महंगा तुम्हे क्या दीखता नहीं
बढ़ रही दिन ब दिन महंगाई क्यूँकर जीए
आये तुम BPL में कुछ और हो सकता नहीं 

कहने लगी - अब उठो भी
चाय बनाओ
हाँ आज का अखबार भी दे जाओ
आज दिमाग में लहरे उठ रही हैं

चोंके हम लहरों का नाम सुनकर
फटाक से पहुंचे किचेन के अन्दर
क्योंकि लहरें उठती हैं तूफान लाने  के लिए
कुछ बसे हुए शहरों को मिटाने के लिए
मस्जिद टूटी उठी लहरें
इंदिरा मरी  उठी लहरें
बढ़ी महंगाई उठी लहरें
भ्रस्टाचार बढ़ा उठी लहरें
अपने आप नहीं iइस देश में
गर कोई उठाये तो उठी लहरें
उठने की घात  में हैं लहरें
और लहरों से जुड़े कुछ जज्बात हैं इन लहरों में विनाश है
इस बात का तुम्हे अहसास है
मेरी बीवी की लहरें तो एक चाय से शांत हो जाएँगी
महंगाई, लहू और भ्रस्टाचार से उठने  वाली इन लहरों को दबा लो
दो चार घरो को मेरे दोस्तों उजड़ने से बचालो


 

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