Saturday, December 24, 2011

कह नहीं पाया......

जब जब देखता हू
अक्स अपना आयने में
मेरा वजूद कही नज़र नहीं आया,
थी दिल की नन्ही नन्ही इमारते
जाने कैसे ढह गयी,
कोई खंजर नज़र नहीं आया,

मोहब्बत में उसूल है ये आज जाना
जिससे की है उससे कोई कह नहीं पाया,

एक होना मोहब्बत में, और दुनिया के दायरे
इन दायरों का बोझ कोई सह नहीं पाया,

वो कल शाम की तो बात थी, जो लफ्ज उछले थे
उन लफ्जो में वो उसको अपना कह नहीं पाया,

मांगती है वो  उससे जिंदगी का हिसाब
जानता है दूर एक पल वो रह नहीं पाया,

कह दिया दिल का दर्द तो हम समजे
जो कहना था वो बाकि कह नहीं पाया,






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