कुछ पंक्तिया ...यूंही यदा कदा............
ऐ- चाँद तू होंसले बुलंद रखना
शर्त तुझसे किसी ने लगा रखी है,
चांदनी तेरी मंद पड़ेगी लाजिमी
वो अपने महबूब के प्रेम में नहा रखी है
आज फिर से एक पुरानी कविता ले बैठे जो हम
वफ़ा का एहसास जाने क्यों शर्मिंदा हो गया,
पार्क के तिनके जो साथ में तोड़े थे हमने
हर तिनका तेरी यद् में जिन्दा हो गया,
खैरात नहीं है दोस्तों ये जिन्दगी हमारी है
होंसला है बुलंद अश्क आँखों से न ढल पायेगा
गए हैं जो छोड़कर हमे आयेंगे एक दिन
ये जमाना है , ऐ मेरे दिल फिर से बदल जायेगा!
No comments:
Post a Comment