Thursday, August 11, 2011

जो था दिल्लगी के लिए

आज सोचा है बहुत साल बाद
की जो था दिल्लगी  के लिए,
उससे तो लाख अच्छा था
जो मिला जिंदगी के लिए/

ये चाँद, ये रात, दो रूहे-एक बदन
तू जमाना तू रब, सब नकली बाते,
तेरे इश्क में निकले हैं अश्क इतने
की संभाले नहीं जाते,
क्या थोड़ी सी खैरात न थी तेरे पास
मेरी बंदगी के लिए/

मैंने यु ही टटोला
तेरे मन को परते उतारकर,
राज़ को राज़ रहने देते
तो क्या बात थी,
गए छोड़कर तुम जिस दिन मुझे,
वो दिन न था सदी की सबसे स्याह रात थी/
फ़िक्र न कर हमें तो कुछ न कुछ
बहाना चाहिए संजीदगी के लिए,
वरना न्योछावर कायनात
तेरी सादगी के लिए /

आज सोचा है बहुत साल बाद
की जो था दिल्लगी  के लिए,
उससे तो लाख अच्छा था
जो मिला जिंदगी के लिए/

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