Thursday, July 21, 2011

गले लगा ज़रा....

इम्तेहा है मेरे इम्तेहा की, अब तो हाले दिल सुना ज़रा
हो रही है हंसी शाम उदास, अब तो गले लगा ज़रा,


आँखों में है ख्वाब पल रहे, ख्वाबो में हम जल रहे
बनने से राख इनको किसी तरह बचा ज़रा,

भटक गया है वो गाँव में, नया है शायद
तू आंख बन उसकी रास्ता बता ज़रा,

भागती है जिंदगी  करने को हर ख़ुशी हासिल  
जो हासिल हो दो पल का सकून, दिला ज़रा,

वो रूठा है हमसे किसी बात पे एक जमाने से
तू कर कुछ उपाय, उस बात को भूला ज़रा,

खुश रहे वो सदा माँ की दुआ हरदम  साथ है
माँओ को भी ज़माने की बद दुआओं से बचा ज़रा

लड़ लिया वो प्यार से प्यार की खातिर बहुत
चल ए दिल अब उसको मना ज़रा, 

इम्तेहा है मेरे इम्तेहा की, अब तो हाले दिल सुना ज़रा
हो रही है हंसी शाम उदास, अब तो गले लगा ज़रा,





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