मुझे तुम्हारी किसी बात पे ऐतराज थोड़े ही है
पर याद क्यों आते हो अब प्यार थोड़े ही है,
वो बातें मुलाकातें रातें सब तो बीत गया
अब वफ़ा वादें निभाएं ऐसा करार थोड़े ही है।
एक पल की नाराजगी से जो जान निकलती थी
हफ्ते निकल जाते हैं, शेर हैं, सियार थोड़े ही हैं।
हम अब भी तुम्हे सोचकर चूमते हैं महबूब को
छोड़कर जो गए हो, वापसी का ऐतबार थोड़े ही है।
इश्क़ लबालब, इश्क़ समंदर, इश्क़ इबादत था
महकते हो अब भी, 'राज' यादों से फरार थोड़े ही है।
बाहों में भर बदन चूमें, जुल्फें संवार लें जो मन हो
हमारे अंदर बसे हो तुम्हारी दरकार थोड़े ही है।
यूँ न रौब दिखाओ, रिश्ते गिनाओ रसूखदारों से
बहुत देर हुई तुम्हे गए, अब वो सरकार थोड़े ही है।
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