Saturday, August 15, 2020

काश कि सब ठीक हो !

कह तो दिया है

सांत्वना दे तो दी है  

सब ठीक होगा,  

पर कैसे 

मालूम नहीं है,

क्यूँकि 

अभी भी आंधियां आने को हैं तत्पर 

उड़ाने को इस छप्पर की दीवारें 

ढहाने को आँसुओ के बाँध 

मिटा देने को लहलहाते खेत 

उथल पुथल करने को मंजर 

और 

किसान खड़ा  मुहाने पर 

साफा बांधे 

हिम्मत ओढ़े 

कस्सी और फावड़े को पकड़ 

अपनी बिखरी दौलत बचाने,

तो क्या 

 बचा लेगा पगड़ी की शान  

साफा फंदा  तो न बन जाएगा, 

हिम्मत रोक लेगी उफनते भावों को 

या घुटने तक देगी, 

वो दौड़ कर एक चद्दर में समेटने लगा है 

सारी भारहीन वस्तुएं 

और बहुत बहुत भारी हो गयी है 

उसकी गठरी 

देखें 

वक़्त किसको कितनी हिम्मत देगा 

काश कि  सब ठीक हो ! 


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