कसम से गर तू भी साथ यहां आयी होती
फिर हमने ये ग़ज़ल ना यूँ सुनाई होती।
मेरा बनना अगर इतना ही लाजिमी था
कभी तो ये बात इशारों से समझाई होती।
अब हुए दो बच्चों के अब्बा मेरी जाना
इश्क़ वक़्त पे करते तो ना रुसवाई होती।
इस दिल की लकीरों में कैदख़ाना है लिखा
फर्क क्या हुकूमत बीवी ने या तुमने चलाई होती।
अब बाहों में कभी कभी बहुत गम होता है
तुम होती तो मुलायम सी रजाई होती।
तुम्हारी गुजारिशें सुनता मैं कितने चाव से
और अंत में ये खाली जेब दिखाई होती।
तुम समोसा कहती और मैं रसगुल्ला
देखो खाने पे हमारी कितनी लड़ाई होती।
तुम भी तो मूटला गयी हो अम्बेसडर सी
ऐसी तो हमारे दिल को ना भायी होती।
कसम से गर तू भी साथ यहां आयी होती
फिर हमने ये ग़ज़ल ना यूँ सुनाई होती।
फिर हमने ये ग़ज़ल ना यूँ सुनाई होती।
मेरा बनना अगर इतना ही लाजिमी था
कभी तो ये बात इशारों से समझाई होती।
अब हुए दो बच्चों के अब्बा मेरी जाना
इश्क़ वक़्त पे करते तो ना रुसवाई होती।
इस दिल की लकीरों में कैदख़ाना है लिखा
फर्क क्या हुकूमत बीवी ने या तुमने चलाई होती।
अब बाहों में कभी कभी बहुत गम होता है
तुम होती तो मुलायम सी रजाई होती।
तुम्हारी गुजारिशें सुनता मैं कितने चाव से
और अंत में ये खाली जेब दिखाई होती।
तुम समोसा कहती और मैं रसगुल्ला
देखो खाने पे हमारी कितनी लड़ाई होती।
तुम भी तो मूटला गयी हो अम्बेसडर सी
ऐसी तो हमारे दिल को ना भायी होती।
कसम से गर तू भी साथ यहां आयी होती
फिर हमने ये ग़ज़ल ना यूँ सुनाई होती।
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