सुहाने मौसम में आंसू बहा रहा है
वो अपने ह्रदय भाव जता रहा है।
रातों उठ के जो चौंके जा रहा है
किसी के जाने का डर सता रहा है।
तेरा ख्याल जो नहीं जा रहा है
जाने कितनी करवा खता रहा है।
जो चित्र मेरे ह्रदय पर अंकित है
दूसरे की मिल्कियत बता रहा है।
अब खँडहर,मिट्टी,कंकर,मलबा है
जो दशकों से तेरा पता रहा है।
बिछुड़ने पे जो गुनगुना रहा है
जाने कितने दुःख छुपा रहा है।
जेठ दूपहरी नंगे पाँव जा रहा है
वो दुःखों की इंतेहा बता रहा है।
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