कहीं भी जाऊं बदन से गाँव की खुशबु नहीं जाती
मेरे माथे पे परेशानी की लकीरें पहचान लेते हैं
मेरे पिता की देने की आदत हरसू नहीं जाती।
वक्ती थपेड़ों ने खंडित किया तोड़ दिया है मकाँ
पर इन दीवारों से लोरी की गूँज यूँ नहीं जाती।
मन के चोर चेहरे पर खिलते हैं यकीं मानो
मीन कारोबारी के हाथों से कभी बू नहीं जाती।
मेरी एक छोटी सी खता पे रूठे हो जो इतने
गलतियाँ हो जाती हैं जान के की नहीं जाती।
भारत पाकिस्तान हुए हैं हमारे रिश्ते
पीढ़ियां चली गयी मगर अकड़ क्यूँ नहीं जाती।
ऐसी मिटटी में दफ़न होने की आरज़ू नहीं जाती।
वक़्त के साथ बना लिया है एक और घर लेकिन
यादें बचपन वाले घर की दिल से क्यूँ नहीं जाती।
यादें बचपन वाले घर की दिल से क्यूँ नहीं जाती।
मेरे माथे पे परेशानी की लकीरें पहचान लेते हैं
मेरे पिता की देने की आदत हरसू नहीं जाती।
वक्ती थपेड़ों ने खंडित किया तोड़ दिया है मकाँ
पर इन दीवारों से लोरी की गूँज यूँ नहीं जाती।
मन के चोर चेहरे पर खिलते हैं यकीं मानो
मीन कारोबारी के हाथों से कभी बू नहीं जाती।
मेरी एक छोटी सी खता पे रूठे हो जो इतने
गलतियाँ हो जाती हैं जान के की नहीं जाती।
भारत पाकिस्तान हुए हैं हमारे रिश्ते
पीढ़ियां चली गयी मगर अकड़ क्यूँ नहीं जाती।
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