बड़ी असमंजस वाली परिस्थिति है ..कुछ टेलीफोन नंबर्स हैं ...जिन्हें अरसा हुया यूज नहीं किया ..अभी भी स्टोर हैं .शायद कभी यूज हों भी नहीं ..कभी कभी डिलीट करने का मन करता है पर हिम्मत नहीं जुटा पाता। स्क्रोल करने लग जाओ तो कुछ तो ऐसे हैं जो अभी भी मुंह जुबानी याद हैं, कुछ अब काम भी नहीं करते। परन्तु समस्या जस की तस है की इन्हें कैसे और किस तरीके से किसी संदूक में बंद कर समंदर में ड़ाला जाये और निजात पाई जाये। मुश्किल लगता है, सच कहूँ तो मेरे लिए नामुमकिन है।
क्यूंकि कुछ तो उस जमाने से साथ हैं जब एसटीडी पीसीओ पर बहुत लम्बी लाइन लगा करती थी, एक डेढ़ घंटे के बाद मात्र ये पूछने या कहने की हिम्मत जुटा पाता था कि कल फलां नोट्स वाली कॉपी ले आना। तुमने वो वाले लेक्चर का काम कर लिया क्या ? दो एक मिनट में महीने का सारा बजट गड़बड़ा जाता था और ऊपर से लाइन में लगे लोग भी ऎसी नजरो से देखने लगते थे जैसे की उनके सामने कोई बलात्कारी खडा है और मौका मिलते ही वो उसे चलती ट्रेन के आगे फेंक देंगे। तो दोस्तों से उधार मांगने से बचने के लिए जिसमे मैं आज तक सफल नहीं हुआ, और घूरती निगाहों को थोड़ी राहत देने के लिए फोन जल्दी से रख दिया करते थे। वैसे निगाहों का ज्यादा असर नहीं था, हाँ बजट वाली बात में अब मुझे ज्यादा वजन लगता है।
मोबाइल जमाने को अपनाने का कारण भी वही रहा की इसकी वजह से शायद दिल की बात कह पाउँगा। वस्तुतः घूरती निगाहों से बच कर शायद हिम्मत काम कर जाये।पर ऐसा हुआ की नहीं आप खुद ही फैसला कर लीजियेगा, क्यूंकि कहीं न कहीं एक ईमानदार कोशिश आपने भी की होगी। देखिये इसमें मुझे आपको शामिल करने का मतलब ये नहीं है की आप भी मेरे जैसे हैं या हरकतें मेरी जैसी हैं, मुझे यक़ीनन खबर है की आप बहुत गंभीर रहें होंगे और आपके मोबाइल में ऐसे टेलीफोन नंबर्स की मात्रा कम होगी। पर एक आध केस से आप मना भी नहीं कर सकते। अच्छा! मोबाइल्स आने के बाद नंबर्स को याद रखने की परम्परा काफी हद तक कम हुयी है। पर मैं इस मामले में भी ठूंठ रहा अभी भी नंबर्स को याद करता रहा और अब वो जहन में इस कदर अंकित हैं की मोबाइल् से भी डिलीट करते नहीं बन रहा।
कुछ इंसान की फितरत भी होती है, इधर तो कॉपी का वो पेज भी आज तक सम्भाल के रखा है जिसमे उसने दो चार लाइन्स आड़ी टेढ़ी मार दी थी ऐसे ही कुछ समझाने को। फिर नंबर को डिलीट करना कितना मुश्किल होगा आप खुद ही सोचो, मेरे लिए। हाँ उसने तो कर दिया ये पक्का है क्यूंकि यही सात आठ एक साल पहले जब नंबर मिलाया था तो "यह नंबर मौजूद नहीं है " की आवाज मुझे आज भी इतनी ही जानलेवा लगती है जितनी उस दिन लगी थी। पर कम्भखत उस नंबर को कैसे मिटा दूँ जिसपे मैंने अपनी जिंदगी के हज़ारो सपने देखे, उन्हें उन सर्द भरी रातो में कहा, हालांकि अब मुझे लगता नहीं की किसी ने सुना था। पर देखिये ये बात अलहिदा है की वो बेशकीमती वक़्त जिसमें मैं शायद इतना कुछ कर जाता की दोस्तों से उधार न मांगने की हालत में तो होता ही , मैंने उन नंबर्स को वो वक़्त भेंट किया। हाँ अब मैं कुछ ज्यादा भावुक होकर मुद्दे से भटक रहा हूँ। तो समस्या अभी भी यही है की इन नंबर्स का मैं क्या करूं? गंभीर है, पर है तो। अभी तो पता नहीं किन किन नामों से, जिनके असली नाम उन फीडेड नामों से मेल खाने लगे हैं, रखे गए इन नंबर्स पर प्राणप्रिया खिंचाई कर चुकी है। तहकीकात भी हो जाती है। परन्तु गज़ब है की डिलीट का बटन दबाते नहीं बन रहा, न ही कर पाउंगा। समस्या है और गंभीर भी।
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