है रोटी नहीं पास मेरे
और मैं भूखा हूँ ,
हूँ वही पुराना पेड़ पर
बिन पानी के सुखा हूँ ...
बहुत दिनों दे दी छाया
बहुत दिए फल मैंने ,
सब तेरा है अब संभाल इसे
मैं कितने सालो से झूका हूँ...
महंगाई यूँ बढती गयी
टहनिया मेरी घटती गयी
पाला मैंने तुम्हे जवान किया
हुई उम्र बहुत अब मैं चूका हूँ ...
देखता हूँ भ्रष्ट भूख
नेता और नीति की, जगारीति की
हूँ सबसे बुढा घर का
खातिर महंगाई भूखा हूँ ....
थका बहुत लड़ते लड़ते
हुई उम्र बहुत अब मैं चूका हूँ ...
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