Tuesday, August 23, 2011

अन्ना गाँधी नहीं हैं..पर जनता की मजबूरी है....

एक मैं ही नहीं सभी के दिल  में ये विचार है  और सवाल भी की जनता अन्ना के पीछे क्यों? हर गली हर नुक्कड़  पर अन्ना है और दिन ब  दिन बढ़ते जा रहे हैं, तो क्या केवल अन्ना का उपवास इसका एकमात्र कारण है  या कही दुसरे ढेर सारे कारण एकत्र हो कर जनता को एक तरफ  कर रहे है / ये तो आजकल केंद्र में बैठी हुई सरकार के बहुत सारे मंथन/ चिंतन कर्ता सोच रहे होंगे, लगातार दिन रात, इस मुशीबत से निजात पाने की कोशिश भी  कर रहे होंगे, तो उन्हें क्या मिला? जवाब खुद जनता ही है/ देखिये अन्ना गाँधी नहीं हैं न थे न होंगे,  हां कुछ अपनाये जाने वाले रास्ते गाँधी  वादी हो सकते हैं/ यहाँ सवाल ये उठता है की केवल गाँधी वादी होने से जनता समर्थन करती है या कारण को समर्थन मिलता है/ यहाँ पर समर्थन कारण को मिल रहा है, जनता परेशान है ...महंगाई का बुरा हाल है ..एक हफ्ते प्याज़ ५० रुपये किलो तो दुसरे हफ्ते टमाटर ६० रुपये किलो, बढती तेल की कीमते .मुद्रा स्फीति ये  वो , हर सरकारी दफ्तर में हाथ जोड़ना जनता की मजबूरी बनी हुई है, कही कोई सिस्टम बनाया  जाता है तो उसका  तोड़ पहले निकल आता है और जनता ठगी रह जाती है...घर महंगे, लोन महंगे, खाना महंगा वो भी उस देश में जहा गरीबो का प्रतिशत इतना ज्यादा है, विसमताये इतनी है की बस पूछो मत, अगर मैं शोर्ट में कहू तो आम जनता की वाट लगी हुई है वो दुखी है , परेशान है, उसको पता नहीं चल रहा था की क्या करे और ऐसे वक़्त में अन्ना आ गए JANLOKPAL  बिल लेकर तो उन्हें एक रास्ता दिखा और वो उस पर चले/ ये सर्व विदित है की समर्थन कर रहे लोगो में से बहुत सारे ( बहुत सारे से मेरा मतलब ५०% से भी ज्यादा है) जो ये नहीं जानते की ये बिल है क्या और इसके आने से क्या होगा उन्हें केवल भ्रष्टाचार  सुनाई दे रहा है और अन्ना उसको ख़तम करने का माध्यम/ जबकि अन्ना ने खुद कहा है की इस बिल के आने से ६०% तक भ्रष्टाचार कम  होगा पर वास्तविकता क्या होगी वो तो वक़्त ही बता पायेगा पर अगर अन्ना का ही ये विश्वास है तो ये प्रतिशत बहुत कम करने का जोर/ अदा देश के लोगो में है/  गर उन्हें मात्र भ्रष्टाचार से प्रॉब्लम हो रही है तो क्यों नहीं हरेक आदमी शपथ लेता की न रिश्वत देगा और न ही लेगा पर ऐसा हो नहीं सकता, स्वार्थ  हर जगह  सर्वोपरि हो जाता है और  इन्सान वो कर्म करता है जिसके लिए अभी वो लड़ रहा है/
                                       पर केवल भ्रष्टाचार ही समस्या होती तो बाबा क्यों फेल हो गए, कारण तो उनका भी वाजिब था/ यहाँ पर सोचने की जरुरत है और मनन करने की भी, की क्या अन्ना का काम करने का तरीका सही है? क्या अन्ना का इतिहास  हमें ये नहीं बताता की आन्दोलनों से न्याय मिलता है? क्या  अन्ना के पीछे कोई छुपा हुआ अजेंडा  है? देखिये सवाल हम जितने मर्जी खड़े कर दे और खड़े कर भी रहे हैं क्योंकि  ये भी  सस्ती पुब्लिसिटी का अहम् मार्ग है जब हम किसी सेलेब्रिटी को गाली दे तो हम पब्लिसिटी में एक कदम आगे बढ़ा देते  है यही बात सारे आलोचकों पर लागु हो रही है/ मेरा भी मकसद सभी को नेक लगे ये जरुरी नहीं पर   एक  बात   जो सत्य है वो ये की जनता परेशां है, दुखी है, दिलो में आक्रोश है तो उसको सही इश्तेमाल करने का जिम्मा या तो सरकार ले या फिर भुगते/ हाँ अन्ना भी अगर कही चुकते है तो यही जनता कल उनके खिलाफ नारे लगा रही होगी/ फिलहाल मेरी दिल्ली इच्छा तो यही है की भ्रष्टाचार कम हो, महंगाई कम हो, जनता को थोड़ी राहत की सांस मिले...फिर ये चाहे अन्ना के रास्ते मिले या की सरकार खुद अन्ना बने !

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