Thursday, April 8, 2021

चपला दिल में दौड़ती . . .

ये भाव नूतन है

मिलन अनोखा है

मंजर दुर्लभ है

तुम्हारी आंखे बोल कुछ रही हैं

होंठ कंपकंपा रहे हैं

सीने की धड़कनें हमें बुला रही हैं

और हम निश्छल, एकटक, संकोची बन 

भाव विहवल हैं तुम्हारे अन्दर समाने को ।

अपनी आगोश में 

समेटकर एक दूजे को 

अधरों पर अधर रख 

हम समर्पित कर रहे हैं

परस्पर अपना स्वाद

बेहद प्रेम में डूबे दिल 

कितने बेताब हैं अपनी कहानियां सुनाने को।

जिस्म तरंगित

अठखेलियां अनगिनत 

मन उद्वेलित 

और 

चपला दिल में दौड़ती रतिकेलि करती

बदन ऐंठते हैं मिलन को 

निष्कपट शर्म दीवार ढहाने को।

तुम्हारे हृदय की धड़कनें सुन रही हैं अभी तक अनवरत 

धौंकनी के जैसे चलती सांसे

घुल रही हैं 

मेरी सांसों में 

और

हम हिमखंड सा पिघलकर

बन रहे हैं एक नदी

जो तत्पर है समंदर में खो जाने को।






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