होगा कभी ऐसा शायद ।
किसी पुराने फोल्डर में
तस्वीर तुम्हारी नयी सी
मिल जाएगी
तुम कह रही होगी
थोड़ा सा झिझकते सी
भूल गए कि याद है?
वो झील किनारे वाली
बातें
मुलाकातें
जब आंखो में आंखे डालें
एक दूजे के सहारे
हम मिले थे दो किनारे
भूल गए कि याद है?
खिली सी शाम में
मधम सी रोशनी
क्या नहीं कहा तुम्हारी आंखों ने
वो गुदगुदाते
रुलाते
मंजर तमाम
भूल गए कि याद है?
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