हमने क्या क्या लिख डाला पता नहीं है
उसके बिन रहना अब मगर सजा नहीं है।
ख्याल गैर का दिल में और पहलू में बैठा है वो
फक़्त इतनी सी बेवफाई तो कुछ खता नहीं है।
अब उसको जो मर्ज़ी हम कह दें
कुछ भी कहने का मगर मजा नहीं है।
मिली ठोकरें तो हमसे आकर लिपट गया
सच तो ये है कि ये कोई वफ़ा नहीं है।
वो चाहता है कि हम उससे लिपट जाएँ
हाज़िर हैं हम पर इसमें हमारी रज़ा नहीं है।
हमारे लाखों संदेशों का जवाब नहीं देगा
ये आदत है उसकी हालांकि खफा नहीं है।
उसके बिन रहना अब मगर सजा नहीं है।
ख्याल गैर का दिल में और पहलू में बैठा है वो
फक़्त इतनी सी बेवफाई तो कुछ खता नहीं है।
अब उसको जो मर्ज़ी हम कह दें
कुछ भी कहने का मगर मजा नहीं है।
मिली ठोकरें तो हमसे आकर लिपट गया
सच तो ये है कि ये कोई वफ़ा नहीं है।
वो चाहता है कि हम उससे लिपट जाएँ
हाज़िर हैं हम पर इसमें हमारी रज़ा नहीं है।
हमारे लाखों संदेशों का जवाब नहीं देगा
ये आदत है उसकी हालांकि खफा नहीं है।
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