Friday, April 27, 2012

तरोताज्ज़ा हो जाती हो!!!

यादें कुछ धुंधली 
गर्द वाली हो गयी,
अब आती ही रहती है
बहुत भुलाने के बाद भी,

बहुत पुरानी
किताब की कहानिया
जैसे याद हो 
और किताब उठाने पर
तरोताज्ज़ा हो जाती हो!!!

मैं रेगिस्तान की
रातो की हवा
हो जाता हूँ
सुबह उठकर रात की
तासीर भूल जाता हूँ

पर ढलती शाम में
सब छोडकर
आती  हो तुम,
हम ढल जाते हैं
एक सांचे में
मस्त हवा बन के
तरोताज्ज़ा हो जाती हो!!!

रंग जिंदगी के
यादो में धुल गए
दो चार बाल जो  
बुड्ढा गए हैं
आईने में सूरत
तो याद है
देखने को पर
आईने की दरकरार है
गर्द उठ जाती है
आईने में तू जब नज़र आती है
तरोताज्ज़ा हो जाती हो!!!

यादें कुछ धुंधली 
गर्द वाली हो गयी,
अब आती ही रहती है
बहुत भुलाने के बाद भी,




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